किनारा की खोज ने दो संस्कृतियों को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है- प्रो.शेलेन्द्र शर्मा

मालवी निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान का प्रथम लोकार्पण सम्पन्न
देवास। अनुवाद कार्य महज दो भाषाओं को जोड़ने का काम नहीं है, बल्कि इससे चारों और संवेदनाओं के तट बंधों को तोड़ते हुए दो संस्कृतियों और परंपराओं को जोड़ने का कार्य संभव हो पाता है और इसे परिणीत किया है। मालवी मना हेमलता शर्मा भोली बेन ने जिन्होंने हरिशंकर परसाई के लघु उपन्यास तट की खोज का मालवी रूपांतरण किया है। यह बात मालवी निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान के पटल पर श्किनारा की खोजश् अपणो मालवो भाग दो पुस्तक के ऑनलाइन लोकार्पण समारोह में कही। वे कहते हैं कि मालवी में इसे अनुदित रूप में लाने से कई नए पाठक इसका आस्वाद ले सकेंगे। यह उपन्यास परसाई जी के मिजाज और तेवर से हटकर है और यह बेहद प्रसन्नता का विषय है हेमलता शर्मा भोली बेन अनेक माध्यमों से मालवी सेवा कर रही है। कार्यक्रम का शुभारंभ शोभा रानी तिवारी की सरस्वती वंदना से हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर विकास दवे कहते हैं कि बोलियों में रचना कर्म करना वास्तव में बोलियों की बहुत बड़ी सेवा होती है। बोली को भाषा बनने की यात्रा में यह सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है। जब भी मालवी को बोली से भाषा बनाने की दिशा में कोई बड़ा अभियान चलेगा। तब हेमलता जी के किए हुए कार्यों को बहुत ही सम्मान के साथ रेखांकित किया जाएगा, क्योंकि लगातार मालवी में मूल लेखन के साथ इन्होंने व्यंग्य सम्राट हरिशंकर परसाई के उपन्यास तट की खोज का अपनी मातृ बोली में अनुवाद करके मालवी की सेवा का संकल्प प्रदर्शित किया है। यह उपन्यास मानवीय संवेदनाओं से लबालब भरा है जिसे मालवी में पढ़ना रोचक होगा।
इस अवसर पर विशेष अतिथि की भूमिका अदा कर रही मालवा प्रांत की अध्यक्षा माया मालवेंन्द्र बदेका ने मीठी मालवी में भोली बेन को आशीर्वाद प्रदान करते हुए पुस्तक के सार को रेखांकित किया। इसी प्रकार संस्थान की अध्यक्ष डा. स्वाति तिवारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार परसाई जी का उपन्यास तट की खोज कालजयी रहा है उसी प्रकार मालवी निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान की सचिव भोली बेन द्वारा किया गया मालवी रूपांतरण किनारा की खोज भी कालजयी कृति साबित होगी।
संपादकीय में भोली बेन ने अपने मन की बात साझा करते हुए लिखा कि मेरा मालवी का समस्त साहित्य मालवी प्रेमियों के लिए निशुल्क रहेगा। मालवी बोली को भाषा बनाने की दिशा में निरंतर प्रयासरत हूं। मालव मयूर के नाम से प्रसिद्ध आनंदराव दुबे की सुपुत्री एवं मालवी कवयित्री ने भोली बेन को प्रख्यात मालवी गद्यकार की उपमा प्रदान की तो वहीं विशेष अतिथि के रूप में कवि संजय परसाई सरल ने पुस्तक और भोली बेन की भूरी-भूरी प्रशंसा की । वरिष्ठ साहित्यकार हरमोहन नेमा ने इस कार्य हेतु भोली बेन को साधुवाद ज्ञापित किया। आभार प्रदर्शन गीतकार अलक्षेन्द्र व्यास ने किया। इस अवसर पर हरिशंकर परसाई के भतीजे मुकेश दीवान सहित चेतना भाटी, हरमोहन नेमा, जीडी अग्रवाल, डिस्ट्रिक्ट कमांडेंट महेश हनोतिया, जनसंपर्क अधिकारी प्रलय श्रीवास्तव, मुकेश शर्मा, बालीवुड अभिनेता राघवेंद्र तिवारी, रागिनी शर्मा, रश्मि चैधरी, अपर्णा तिवारी, सुषमा व्यास , शशि निगम, शशिकला अवस्थी, शरद द्विवेदी, पल्लवी जोशी, अनिल ओझा, सतनामी श्सरलश् दादा भीम सिंह पंवार, विक्रम सिंह, कुसुम सोगानी, मंजूला भूतड़ा आदि साहित्यकार मौजूद थे।