निगम चुनाव में करारी हार पर शहर कांग्रेस अध्यक्ष से इस्तीफे की मांग
जब जीत का सेहरा बांधते हैं तो हार की जवाबदारी लेना ही चाहिए और नैतिकता के नाते इस्तीफा दे देना चाहिए।
इस समय जहां भारतीय जनता पार्टी में जीत का जश्न मनाया जा रहा है ।तो कांग्रेस में इस समय नगर निगम और परिषद के चुनाव में हार का ठीकरा शहर कांग्रेस अध्यक्ष मनोज राजानी टिकट वितरण को लेकर उन पर ही फोड़ा जा रहा है। शहर में महापौर की सबसे दयनीय हालत में हार के बाद अगर पार्षद की स्थिति भी देखें तो वह भी उससे ज्यादा हालत खराब है। 45 में से केवल 8 पार्षद वह भी कई जगह कमजोर प्रत्याशी तो कई जगह अपने दम पर जीत कर आए हैं। कई जगह तो कांग्रेस की हालत इतनी खराब रही कि वह तीसरे नंबर पर आई।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता से लेकर युवा यही कहते हैं कि टिकट वितरण में रेवड़ी की तरह अपने अपने वालों को टिकट देने से यह हालत हुई है। वरना कांग्रेस इसके पहले दो तीन बार महापौर और अपनी परिषद बना चुकी है तब और अब मैं बस अंतर टिकट का है। विरोध मनोज राजानी का चल रहा है क्या वह इस्तीफा देंगे। शहर कांग्रेस अध्यक्ष से ऐसा लगता नहीं है क्योंकि मनोज राजानी जिन्होंने सत्ता पक्ष में सरकार अपने हिसाब से चलाएं पूरा जिला अपने हिसाब से चलाया और संगठन में भी जिलाध्यक्ष तक उनके समर्थक है। मनोज राजानी के साथ भाग्य रहा कि सकता जाने के बाद भी उनके नेता कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष बने रहे एक व्यक्ति दो पद मुख्यमंत्री के बाद प्रदेश अध्यक्ष कल लाभ भी अभी तक ले रहे हैं वैसे राजानी को प्रदेश में बड़ा पद मिल सकता था और वह नहीं तो पूरे जिले में जिलाध्यक्ष का पद भी उनके हाथ में ही था परंतु शहर के अंदर कोई नया नेता उभर कर सामने ना आए या विधानसभा की तैयारी के हिसाब से विरोध प्रदर्शन जो कि मनोज राजानी को सबसे अच्छा करना आता है। उस हिसाब से शहर कांग्रेस अध्यक्ष का पद लिया विपक्ष की भूमिका इन्होंने अच्छी निभाई लेकिन नगर निगम में मात खा गए। अपने हिसाब से रेवाड़ी की तरह टिकट बांटने का यह मामला इनके पास पहली बार नहीं इसके पहले भी इन्होंने टिकट दिए थे वैसे यह बात सही है कि जब किसी भी नेता का अवसर आता है तो वह टिकट अपने हिसाब से दिलाता है पूर्व महापौर जय सिंह ठाकुर हो वरिष्ठ कांग्रेस नेता शौकत हुसैन ने भी अपने समय यही सब किया। परंतु इस बार महापौर के साथ पार्षद में भी पार्टी को कोई बढ़त नहीं मिली बस पार्षद यह कह सकते हैं ना खोया न पाया।
क्या विरोध के स्वर इस स्तर पर उभर पाएंगे कि मनोज राजानी को इस्तीफा देना पड़े क्योंकि इसके पहले पार्षद के ठीक विधायक की टिकट तक मनोज राजानी के आका पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा और कमलनाथ जी ने बांटे थे तो आगे भी 1 वर्ष बाद विधानसभा है जिले में अभी तक दो गुट चलते थे परंतु अभी तो एक ही सर्वशक्तिमान कांग्रेसमें सज्जन वर्मा गुट चल रहा है दूसरागुट युवा लाबी का थोड़ा बहुत दम भरता है और अंतिम समय में असफल हो जाता है ऐसे में मनोज राजानी का इस्तीफा मांगना विरोध करना अपनी जगह है परंतु देना उनके स्वयं विवेक पर है देवास विधानसभा सामने है अभी महापौर की 45000 की लीड को देखकर भी यदि कोई विधानसभा की तैयारी करें तो उसे कड़ी मेहनत करना होगी आज और कल में समय बदलते देर नहीं लगती आज परिस्थितियां अलग है कल अलग होगी उस हिसाब से देवास विधानसभा के साथ पूरे जिले की एक तैयारी और संगठन को मजबूत बनाने के लिए युवा लॉबी जो लगातार प्रयास कर रही है उसका भी विशेष ध्यान रखना होगा। बहरहाल अभी तो मनोज राजानी के इस्तीफे की बात जोर पकड़ रही है।
