शहर में आवारा कुत्तों का आतंक
लगभग 50 से 60 व्यक्ति रोज हो रहे हैं कुत्तों के काटने का शिकार
नगर जनहित सुरक्षा समिति ने नगर निगम कमिश्नर से आवारा कुत्तों को पकड़ने की मांग, मासूम आमजन का क्या कसूर, क्या बच्चे भी हथियार या दंड साथ लेकर चले, जिला प्रशासन जनप्रतिनिधि इस मुद्दे को गंभीरता से ले

देवास। नगर निगम की लचर व्यवस्था और अधिकारियों की लापरवाहियों का आलम यह है कि रोज कोई ना कोई व्यक्ति कुत्तों के काटने का शिकार हो रहा है। कुत्तों का इतना आतंक बढ़ गया है कि प्रतिदिन लगभग 50 से 60 व्यक्ति कुत्तों के काटने का शिकार हो रहे हैं। नगर जनहित सुरक्षा समिति ने बताया, कि महात्मा गांधी जिला चिकित्सालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार प्रतिदिन 50 से 60 रेबीज इंजेक्शन कुत्तों के शिकार हुए व्यक्ति को लगाए जा रहे हैं। अभी हाल ही में रामनगर में एक बालिका पर कुत्तों ने हमला कर दिया था। अकेले रामनगर में ही लगभग 40 से भी अधिक आवारा कुत्ते घूमते रहते हैं। एमजी रोड, चामुंडा कॉम्प्लेक्स सहित कई जगह कुत्तों का झुंड विचरण करते हुए देखा जा सकता है। कई बार कुत्तों के लपकने से हड़बड़ाहट में वाहन चालक गिर भी जाते हैं। अगर शहर में देखा जाए तो हर कॉलोनी में अमूमन यही स्थिति है। इन कुत्तों को पकड़ने के लिए नगर निगम द्वारा अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है। नगर निगम स्वास्थ्य अधिकारियों की लापरवाही से रोज 50 से 60 व्यक्ति कुत्तों का शिकार हो रहे है। नगर जनहित सुरक्षा समिति के अनिलसिंह बैस, विनोदसिंह गौड़, सुनीलसिंह ठाकुर, विजयसिंह तंवर, सुभाष वर्मा, सुरेश रायकवार, अनूप दुबे, तकीउद्दीन काजी, सत्यनारायण यादव, दीपक मालवीय आदि सदस्यों ने इन आवारा कुत्तों को पकड़कर नागरिकों को शीघ्र ही राहत प्रदान करने की मांग निगम कमिश्नर से की है।
नगर सुरक्षा समिति द्वारा एक बहुत ही जनहित का मामला उठाया गया है क्योंकि आज सबसे ज्यादा बच्चे इसकी हादसों का शिकार हो रहे हैं।
पशु प्रेमी यह ध्यान रखें की मासूम बच्चे भी किसी के बच्चे हैं। जब यह बाहर निकलते हैं तो कभी उनके हाथ में स्कूल बैग या और कोई सामान होता ही इनसे लड़ने का ना तो कोई साधन होता है ना कोई इनके पास ट्रेनिंग की कैसे बचे इसे या तो पशु प्रेमी एन जी ओ बच्चों को ट्रेनिंग दे। और नहीं तो बच्चों को दंड और हथियार रखना मजबूरी हो जाएगी क्योंकि कुत्ते के पास तो बड़े नाखून के साथ दांत भी हथियार के रूप में ही होते हैं और कहीं बार यह हिंसक हो जाते हैं कहीं घटनाएं पूरे दिन भर में हो रही है।अब आमजन साइकिल पर मोटरसाइकिल पर चलते समय ध्यान नहीं रखता है कि यहां पर कौन सा कुत्ता उसकी चोट पहुंचा देगा। सुबह से अखबार बांटने वाले बच्चे और स्कूली बच्चे तो श्रमिक भी साइकिल पर ही निकलते हैं और बहुत ही गरीब मजबूर पैदल और सबसे ज्यादा इनका घटना भी इनके साथ घटती है साइकिल पर पैदल और मोटरसाइकिल एक्टिवा पर जाने वाले आमजन के साथ। जबकि प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि महंगी फोर व्हीलर मैं एयर कंडीशन से चलते हैं और उन्हें क्या पता कि आमजन का दर्द उनके पीछे कुत्ते भी लपकते है तो कार का क्या बिगाड़ सकते हैं। यहां तो यह बात भी फिट होती की राजा चले बाजार और कुत्ते भुके हजार। तो क्या फोर व्हीलर पर चलने वाले आम जनता का दर्द समझ पाएंगे। आमजन पहले ही इस आपाधापी की दुनिया में कई मुश्किलों से सामना कर अपना जीवन यापन कर रहा है उस पर अगर बीच में कुत्ते भी काट ले तो वह कहां जाए एक और दर्द लेकर शहर की व्यवस्था को कोस ही सकता है।